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द सन

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



उपलब्धि, सफलता, प्यार, खुशी, सुखी विवाह, संतुष्टि सकारात्मकता, मस्ती, गर्मजोशी, जीवन शक्ति

यह कार्ड एक 'यस' सकारात्मक कार्ड है। सूर्य से हमे ऊर्जा मिलती है। नया जीवन मिलता है। आपको हर क्षेत्र में उपलब्धि, सफलता मिलेगी। आपको आपका प्यार, खुशी सब कुछ मिलेगा।यह कार्ड दर्शाता है आपका सुखी विवाह आपको संतुष्टि दे रहा है।आप कितने भी नकारात्मक सोचवाले हो। निजी जीवन में कितना भी परेशान है। फिरभी आपके जीवन का नुकसान नहीं हुआ है। उपरवाले नें आपका अच्छा ही किया है। यह किसी और को पूछे कि आपका भला हुआ है कि नुकसान हुआ है। सकारात्मकता, मस्ती, गर्मजोशी यही अब आपकी जीवन शक्ति है। अब आप्का समय सबसे बेहतरीन समय चल रहा है। उसका आनंद ले। दुनियादारी छोड दे।

रिवर्स भविष्य कथन



अकेलापन, रद्द की गई योजनाएँ, नाखुशी, भीतर का बच्चा, निराश महसूस करना, अत्यधिक आशावादी

आपको अकेलापन सता सकता है। लेकिन आपने ही शायद एकांत मांगा था। वो एकांत मिला तो उसे अकेलेपन क्यों समझ रहे हो? आपकी कई रद्द की गई योजनाएँ फिरसे काम करना शुरू करेगी। छोटे कामों में नाखुशी होगी। क्योंकि आप हमेशा हर एक चीज परफेक्ट चाहते हैं। और आपके जितना परफेक्ट हर कोई है यह जरूरी नहीं है। आपके भीतर का बच्चा जाग जाएगा। वो अचानक निराश महसूस करना, अत्यधिक आशावादी बनना इत्यादि आंदोलन मन में निर्माण करेगा। लेकिन समय चलते आप इन मानसिक आंदोलनों को समझ जाओगे। हरी ॐ

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड के अनुसार द सन लगभग संपूर्ण कार्ड है, केवल पश्चिमी कलाकार ने नग्न प्रतिमा जोड़ दी, इस बार एक बच्ची।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


सूरज अपने चरम पर है। सफेद घोड़ा चल रहा है । एक 'नग्न' खुशहाल बच्ची घोड़े की सवारी कर रही है। आसमान से एक लाल कपड़ा गिर रहा है। चार सूरजमुखी के फूल चमकदार सूरज का आनंद ले रहे हैं।

यहाँ मूल प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड इस प्रकार से है।

भारत में सूर्य को भगवान के रूप में पूजा जाता है। रथ में सात सफेद घोड़े हैं। सारथी, अरुण, घोड़ों के ठीक पीछे बैठा है।

सूर्य देव की कथा विस्तार से

सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे। सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक.यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है। ऋग्वेद के देवताओं में सूर्यदेव का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है।

ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। अत: कोई आश्चर्य नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र तत्र सूर्य मन्दिरों का नैर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है, कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे। उनमे आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं। वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

सूर्य का रथ

इस रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इससे दुगुना इसका ईषा-दण्ड (जूआ और रथ के बीच का भाग) है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है, जिसमें पहिया लगा हुआ है। उस पूर्वाह्न, मध्याह्न और पराह्न रूप तीन नाभि, परिवत्सर आदि पांच अरे और षड ऋतु रूप छः नेमि वाले अक्षस्वरूप संवत्सरात्मक चक्र में सम्पूर्ण कालचक्र स्थित है। सात छन्द इसके घोड़े हैं: गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति। इस रथ का दूसरा धुरा साढ़े पैंतालीस सहस्र योजन लम्बा है। इसके दोनों जुओं के परिमाण के तुल्य ही इसके युगार्द्धों (जूओं) का परिमाण है। इनमें से छोटा धुरा उस रथ के जूए के सहित ध्रुव के आधार पर स्थित है और दूसरे धुरे का चक्र मानसोत्तर पर्वत पर स्थित है।मानसोत्तर पर्वत इस पर्वत के पूर्व में इन्द्र की वस्वौकसारा स्थित है। इस पर्वत के पश्चिम में वरुण की संयमनी स्थित है। इस पर्वत के उत्तर में चंद्रमा की सुखा स्थित है। इस पर्वत के दक्षिण में यम की विभावरी स्थित है।

भारतीय ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है। सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है, लकड़ी मिर्च घास हिरन शेर ऊन स्वर्ण आभूषण तांबा आदि का भी कारक है। मन्दिर सुन्दर महल जंगल किला एवं नदी का किनारा इसका निवास स्थान है। शरीर में पेट आंख ह्रदय चेहरा का प्रतिधिनित्व करता है। और इस ग्रह से आंख सिर रक्तचाप गंजापन एवं बुखार संबन्धी बीमारी होती हैं।

सूर्य की जाति क्षत्रिय है। शरीर की बनाव सूर्य के अनुसार मानी जाती है। हड्डियों का ढांचा सूर्य के क्षेत्र में आता है। सूर्य का अयन ६ माह का होता है। ६ माह यह दक्षिणायन यानी भूमध्य रेखा के दक्षिण में मकर वृत पर रहता है, और ६ माह यह भूमध्य रेखा के उत्तर में कर्क वृत पर रहता है। इसका रंग केशरिया माना जाता है। धातु तांबा और रत्न माणिक उपरत्न लाडली है। यह पुरुष ग्रह है। इससे आयु की गणना ५० साल मानी जाती है। सूर्य अष्टम मृत्यु स्थान से सम्बन्धित होने पर मौत आग से मानी जाती है। सूर्य सप्तम द्रिष्टि से देखता है। सूर्य की दिशा पूर्व है। सबसे अधिक बली होने पर यह राजा का कारक माना जाता है।

सूर्य के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु हैं। शत्रु शनि और शुक्र हैं। समान देखने वाला ग्रह बुध है। सूर्य की विंशोत्तरी दशा ६ साल की होती है। सूर्य गेंहू घी पत्थर दवा और माणिक्य पदार्थो पर अपना असर डालता है। पित्त रोग का कारण सूर्य ही है। और वनस्पति जगत में लम्बे पेड का कारक सूर्य है। मेष के १० अंश पर उच्च और तुला के १० अंश पर नीच माना जाता है। सूर्य का भचक्र के अनुसार मूल त्रिकोण सिंह पर ० अंश से लेकर १० अंश तक शक्तिशाली फ़लदायी होता है। सूर्य के देवता भगवान शिव हैं। सूर्य का मौसम गर्मी की ऋतु है। सूर्य के नक्षत्र कृतिका का फ़ारसी नाम सुरैया है। और इस नक्षत्र से शुरु होने वाले नाम ’अ’ ई उ ए अक्षरों से चालू होते हैं। इस नक्षत्र के तारों की संख्या अनेक है। इसका एक दिन में भोगने का समय एक घंटा है।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

द फूल

द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

द स्ट्रेंग्थ

द हरमिट

द व्हील ऑफ फॉर्चून

जस्टिस

द हैंग्ड मैन

द डेथ

टेम्परंस

द डेविल

द टावर

द स्टार

द मून

द सन

जजमेंट

द वर्ल्ड

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